Sunday, July 31, 2011

मनालाही कळत नसतं

पान जरी कोरं असलं,
तरी पानालाही भावना असतात...,
मन जरी वेडं असलं,
तरी मनालाही भावना असतात...,
पानाच्या भावना कोणालाच कळत नाहीत,
मनाच्या भावना मनालाही कळत नाहीत...,
मनं हे असचं असतं,
इकडून तिकडे बागडत असतं...,
पण मनालाही काही बंधनं असतात,
म्हणुन तर ह्र्दयात स्पंदनं असतात...

Friday, July 1, 2011

हिंदी मराठी कविता आणि दुसरे कांही.

जीवन हे आतिशय क्षीण आहे त्याचा आपण गांभीर्याने विचार केला पाहिजे. 


छोटीशी कविता By AR!F


प्रेम पत्र लिहताना सुरवात कशी करावी?
अंधुक अक्षराने... थोड्या परिचयाने... व शांसक मनाने लिहित आहे, 
रागावणार तर नाहीस ना!! 
          प्राण प्रिये...

अर्चना,
लव्ह लेटर पाठवण्यास कारण, की मला तू खूप आवडते. तू पण माझ्याकडं सारखी बघत असतेस. म्हणून मला वाटतयं, मी पण तुला आवडतो. मी जर तुला आवडत असेन, तर मला गणिताच्या पेपरला मदत कर. तू डोक्यात लाल रिबीन लावत नको जाऊ. तुझ्यामागं दाकिनी बसते ना, ती तुझ्या रिबीनवर पेनची शाई सोडते. मला खूप राग येतो. ती माझ्या घराशेजारीच राहते. शाईचा बदला घ्यायचा म्हणून मी त्यांच्या घराची बेल वाजवून पळून जातो. तू 'फेअर अँड लव्हली' लावत जा. आणखी गोरी होशील. तुझ्या शेजारी बसणारी शीतल आणि
सोनाली दोघेही तुझ्यापेक्षा जास्त गो-या आहेत. पण मला नाही आवडत त्या. 

      पत्राचा राग आल्यास मला परत दे. सरांना देऊ नकोस.
                                                          

                                                                                        तुझा प्रियकर 
                                                                                       
देवेंद्र उर्फ देवदास 
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उम्र कि राह पर इन्सान बदल जाता है,
वक्त कि आंधी से जन्हा बदल जाता है|

गलती मेरी नाही खुदा कि कसम,
हुस्न देखकर आदमी का इमान बदल जाता है|

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तुझ्या सहवासातले प्रिय क्षण ते,

हृदयात मी साठवायचे तरी किती...

तुझे आस्तित्व मिटत असताना,
हृदयात तुला ठेवायचे तरी किती...

झोळीच हृदयात फाटली असताना,
आठवणीचे ठिगळ लावायचे तरी किती...

प्रितीच निराश झाली असताना,
प्रेमाची आशा ठेवायची तरी किती...

कळीच प्रेमाची सुकली असताना,
फुलण्याची आशा मी ठेवायची तरी किती..........

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काळ्या काळ्या केसात उठून दिसेल गजरा....
काळ्या काळ्या केसात उठून दिसेल गजरा....

तू नाही बोललीस......तरी बोलतील तुझ्या नजरा.......

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कोण किसे दिल मे जगह देता हे!!
पेड भी सुखे पत्ते गिरा देता हे...

वाकीफ हे हम दुनिया कि रीवाजोसें!!
मतलब निकाल जाये तो....
हर कोई किसी को ठुकरा देता हे.........
stock photo : little girl crying. Photo of the Jewish memorial in Miami Beach

एक कोशिश और

बस जीवन का दो कश लगा
और खुद को ढारस आप बँधा,
नाकाम हुआ तू, तो क्या शर्म यहाँ,
एक हाथ थाम, एक हाथ बढा़ ।
यह स्वर्ग है, यही नरक है
बस नाम मात्र का फर्क है
गाहे-बगाहे के बाकी तर्क है
जो चमक गया वो अर्क है
जो फिसल गया वो गर्क है
फिसल पडा़ तू, तो क्या शर्म यहाँ
एक हाथ थाम, एक हाथ बढा़
जीवन का बस दो कश लगा
और खुद को ढारस आप बँधा ।
हर दिल यहाँ मुश्ताक है
हर मोढ पर कुछ अवसाद है
और कुछ समय समय की बात है
जो चल पडा़ वो उस्ताद है
जो थक गया वो नाशाद है
थक गया तू, तो क्या शर्म यहाँ
एक हाथ थाम, एक हाथ बढा़
बस जीवन का दो कश लगा
और खुद को ढारस आप बँधा ।
क्या धर्म है, क्या अधर्म है
ज़ीवन के अनसुलझे कई मर्म है
जब रोम-रोम तेरा पुलकित हो
बस वही तो सच्चा कर्म है
जो लोग कहे कुछ, कहने दे
रुसवाई से क्या शर्म यहाँ
एक हाथ थाम, एक हाथ बढा़
बस जीवन का दो कश लगा
और खुद को ढारस आप बँधा ।

वो पुरानी सर्दी

इस ठिठुरती ठंड में,
मेरा ग़म क्यों नहीं ज़रा जम जाता,
पिघल-पिघल कर बार-बार आखों से क्यों है निकल आता ।
घने से इस कोहरे में,
हाथों से अपने चेहरे को नहीं हुँ ढुँढ पाता,
फिर कैसे उसका चेहरा बार-बार नज़रों के सामने है आ जाता ।
बर्फीली इन रातों में,
अलाव में ज़लकर कई लम्हें धुँआ बनकर है उड़ जाते,
बस कुछ पुरानी यादें राख बनकर है कालिख छोड़ जाते ।
अब दिन इतने है छोटे
की सुबह होते ही शाम चौखट पर नज़र आती है,
शाम से अब डर नहीं लगता,
सर्दी तो वही पुरानी सी है,
पर पहले बस ठंड थी,
अब पुरानी यादें भी दिल को चीर कर जाती है ।


तन्हाई

तन्हाई ने एक दिन
मुझसे चुपके से यूं कहा,
दिल तुम्हारा आजकल
ऐसे क्यों धडक रहा ?
अपनी धडकनों से तुम कुछ क्यों नहीं कहते,
हंसी-खुशी वो चुपचाप शान्त क्यों नहीं रहते ?
मैं तो अब भी हुँ तुम्हारे साथ
यूँ ही कसकर थामे रखो मेरा हाथ ।
मैं मंद-मंद मुसकाया
आँखें मुंदकर इशारों में ही ये जताया,
सुनी है,
मैंने भी धडकनों की बात,
खफ़ा हैं वे तुमसे आज रात ।
जशन की रात भी तुम देरी से आते हो
उस पर बहाने पे बहाने बनाए जाते हो ।
पता है,
हमें भी मौसम का मिज़ाज़ खुब,
तुम भी धीरे-धीरे बदल रहे हो अपना रंग-रुप ।
सुना है,
तुम्हारे दोस्तों की ज़मात भी बढती ही जा रही
उस फ़हरिस्त में हमारी यारी नीचे ही फिसलती आ रही ।
याद है,
जब शहर में तुम नए-नए थे
एक छत की तलाश में
दिन-भर फिरते रहते थे
थोडा़ हैरान, कुछ परेशान ।
अपने अच्छे-बुरे कई दोस्तों की बातों को अनसुनी कर
बुलावा दिया था तुम्हें एक शाम अपने घर पर।
उस शाम,
अपनी कहानी कहते-कहते ही सो गए थे तुम
अंधेरे में देख ना पाया
कि रात भर इतने रोए थे तुम ।
बात सुबह समझ में आई
जब पाया, की तकिया तब भी गीला पडा़ था ।
हाथ बढा़कर मैंने कहा था
मेरे कमरे में ही क्यों नहीं रह जाते ।
लिखते-पढते,
सुनते-सुनाते,
नए-पुराने कुछ गीत गुनगुनाते
कट जाएगी ज़िन्दगी यूं ही दिन-रात ।
वैसे भी,
मैं भीड़-भाड़, शोर-शराबे से दूर रहता हुँ
अक्सर पार्टीयों में भी बडा़ बोर होता हुँ
सच्ची-सच्ची कहना
क्या तुम दोगे मेरा साथ ?
तो कसकर थाम लूँ मैं आज ही तुम्हारा हाथ ।
एक वो दिन था
और एक आज का दिन है ,
अब तुम स्वार्थी हो गए हो
कुछ को रुलाते हो
कुछ को सताते हो ।
अपने दोस्तों को समझाते क्यों नहीं
तुमसे दोस्ती सबकी फितरत में नहीं ।
और तुम भी
बंगला-गाडी़ के चक्कर में मत पड़ना
खुशी अगर वहाँ होती
तो तुम्हें फिर क्यों कहते लोग अपना ।
अब बस लौट आओ,
आखिरी कुछ सांसों में तो दोगे तुम मेरा साथ,
तुम्हारे संग
शायद यही हो जशन की आखिरी आज रात ।